जिन पौधों को तुम सींचते,
आज देखो खिल खिला बुला रहे तुम्हें !
आसमां से ओझल होते तारे सारे,
कह रहे जाते देखो हो गयी तेरी सुबह !
कोई सोच रहा, आज किस नाम से बुलाये,
इक नई अब हुई फिर से ये तेरी सुबह !
मुंडेरों पर जो आते रोज पंछी,
चह चहा पूछे कैसी है तेरी सुबह !
कहती तेरी और आती हर हवायें,
शिकन में तुम न समेटों अपनी सुबह !
सब चेहरोँ पर मुस्कान सी लाती,
गीत कलरव गाती गुनगुनाती सी,
ऐसे आती .. रोज जैसे तेरे जैसे तेरी सुबह !