फिर वही बातें, वही रातें !
चाँद सी सादगी दिखती ऐसी,
फिर वही अजनबीपन छाया ..
शब्द घुटते रहे, करते रहे अदब !
थे बेबाक अनेकों वहाँ हुजूम में,
उम्रदराज सी आँखे लिये पल भर,
जी भर के देख मासूम था चाँद,
अब भी वहीँ !
फिर सिमटे लब्जों के ढेर लिये ..
क्यों या क्या पूछुं ..
बस ऐसे ही था हर दफा;
कहते कहते ठहर जाने का सबब !