ताक पर लगा नींदों को,
और लगा चैन के हर कोने,
चाहत सुबहों पर लगाना !
क्या गुनाह है .. ?
माना नसीबों पर नहीं इख्तियार,
और उम्मीदों के कितने बोझ तले,
एक छोटा कोना सजाना,
रंजो गम में थोरा मुस्कुराना !
क्या गुनाह है .. ?
सजाये ख्वाब ना पूछा तुझसे,
तो अधुरा ही सही,
कुछ चाहत जताना,
यादों से थोरा आंखें भिगोना !
क्या गुनाह है .. ?
Nice Poem