मेरी कहीं सारी यादें ना छलक जाये !
देखो मैंने छोर दिया किस्सा अधूरा आज;
क्योंकि कल जो फिर तुम्हें आना होगा यहीं !
लिखने को कुछ यादें फिर इन सुबह की,
और वो सारी बातें गुजरती शाम वाली !
ऐसे तो जाने वाले मुसाफिर ही समझ लो,
हक जता के रोक रखा है उस सफर से मुझे !
कौन जाने उस दिन का मंजर,
फिर से एक ख्वाब ही तो टूटेगा,
यादों के कारवाँ की कौन करता फिकर !
#SK – Again Words And Thoughts of a DAY !!