छोटी सी बात ये, कोई नयी नहीं थी;
अनेकों इतने लम्हें के सिलवटों में दबी सिमटी सी कितनी ही बेवक्त यादें !
खुद से बेहतर समझने ना समझने की बात;
कैसे मैं किस पल समझाने की नाकाम कोशिश करने लगता,
मैं उस पल तलाश करता रहा तुम्हें,
मैं उस पल तलाश करता रहा तुम्हें,
जिस कुछ पल के लिये खुटी पर टांग दी थी जिंदगी हमने !
छोटे छोटे कई शब्दों के टुकड़े,
थक सा जाता जोड़ते जोड़ते इन्हें;
माना आज कहा नहीं कुछ भी हमने,
माना आज कहा नहीं कुछ भी हमने,
ना मशरूफियत है इस रात में कोई ..
हाँ खमोशी के पल है इस तरफ,
देखो तो आके जानों तुम अब भी,
गूँजती आवाज में कुछ नाम है !
गूँजती आवाज में कुछ नाम है !
कब समझा पायेंगे ये सब ..
अब रात है कल सुबह और फिर धीमी पर जायेगी ये शांत नम हवाएँ ..
फिर एक उमस भरी जिंदगी की दुपहरी होगी अनवरत ……
In Night & Pen $K
— feeling Untalked.
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