हरी पत्तियां और कोपले,
निकले अपने खोले आँखे,
देखो छोटे छोटे चिड़यों के बच्चे,
उनके कलरव तुझसे ही मिलते है,
आके जरा देखो तो उन्हें,
जो आ गयी है तेरी मुंडेरों पर !
सीढ़ियों से उतरते एक सुबह,
एक अहसास में कमी सी लगी,
शायद तेरे पेरों में आज पायल नही थे,
ये आँगन तो राह बिछाये थे,
हर सुबह हो तेरे कदमों की आहट,
वो पायल की झंकार उसके कानों पर परे !
तितलियों से नन्हें पाँव तेरे,
घरोंदे देहलीजों से होते हुए,
रंगबिरंगी सी इस मुस्कुराती,
सुबह को क्या नाम दे ?