जब रात तमस बड़ी गहरी थी,
सहमी सी और सुनी थी !
घना अँधेरा धरा पर आता,
शहर घना जंगल बन जाता !
मद में विचरते कुंजर वन में,
विषधर ब्याल रेंगते राहों में !
दनुज सीमा के पार गया,
कुहुकिनी का स्वर भी हार गया !
विवश ईश तुम चुपचाप रहे,
अब मानव से फिर क्या आस रहे !
खग तो पंख विहीन हुआ,
हर मानवता को लील गया !
कुछ रंग देख रियासत का,
उबला खेल सियासत का !
पल विवश वेदना व्यथा भरी,
क्योँ को क्या विशलेषण की परी,
कुछ नैतिकता का विचार करो,
इस मानवता का उपचार करो !
** कुंजर = हाथी ; ब्याल = साँप ; कुहुकिनी = कोयल
Lines Suppressed Of Current Circumstances
# Sujit Kumar