अब जो भी ख्वाब आ जाते …

जिस्म थक जाता है दिन से रूबरू होकर … नींद से पहले जो आधे अधूरे थोड़े से, अब जो भी ख्वाब आ जाते मैं उन्हें समझा दूँगा ! आठ पहर …

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कुछ पूछा होता – Sometimes I feel ?

सहूलियत से हर दफा किस्सा छेरते, कभी कशमकश में हाल पूछा होता !किस कदर अब ना कोई हँसता है, बस सवाल की गहराहियों में दफ्न हो, क्या कुछ सोचता है …

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एक रात शहर की – Devils of Dark Night …!

जब रात तमस बड़ी गहरी थी,सहमी सी और सुनी थी ! घना अँधेरा धरा पर आता,शहर घना जंगल बन जाता ! मद में विचरते कुंजर वन में,विषधर ब्याल रेंगते राहों …

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