आज भी हमारे देश में लड़कियो की उपेछा की दृष्टि से देखा जाता है.. उनको पराया समझा जाता है , समाज आज भी अपने पुराने रीती रिवाजो में उलझा हुआ है.वो हमारे हर रिश्तों में चाहे एक माँ हो या , बहन ,संगिनी या दोस्त हर रिश्तों में स्नेह बरसाती है, जीवन के किसी रंगों में कुछ विचारें उठी जो आप से मुझसे सबसे जुरी है …
नन्ही नन्ही कदमें जब आंगन में चलती है,
कभी पायल की रुनझुन यूँ कानो में परती है,
वो बचपन की किलकारी मन में समायी होती है ,
एक गुड़िया परायी होती है !
लगर झगर के बच्चो से जब ऑंखें उसकी रोती है,
उस मनहारी सूरत को आंसू जब भिगोती है,
तब लपक झपक के एक ममता सीने से पिरोती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
मन की बातें मन में रखकर ,
जब वह घुट घुट के जीती है ,
कुछ न कहकर सब सहकर,
जब वो थोरी सी हँस लेती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
हर रिश्तों को वो तो दिल से यूँ संजोती है,
कभी आँचल में , कभी ममता में , कभी बंधन में,
कभी उलझन में बस स्नेह ही स्नेह बरसती है,
अपने खातिर वो बस, एक गुड़िया परायी होती है !
कहने को हम कह देते सब रीत पुरानी होती है,
फिर भी इस जग की एक रोज नयी कहानी होती है,
एक गुड़िया परायी होती है !
(इस कविता का द्वितीय भाग – ‘एक गुड़िया परायी – २ ‘ )
रचना : सुजीत कुमार लक्की
सुन्दर भावपूर्ण रचना!
hi sujit
Tis is my thogts for your post.
bachpan ki kilkari jab mai lekar delhi aaya tha.
mila koi hame ak aisa jo mere man ko bhaya tha.
jab mai aur wo sath-sath hote the.
to duniya k sare najare pyare the.
ak din mila achanak wo hamko to kuch ras na aaya tha……………
Hello ..Sujit ji, hum net par kuchh search kar rahe the aur kahine se aapka yeh link open ho gaya. bahot pyaara likha hai aapne… kuchh kadavi sachchaaio ko achchhe se shabdo mai bayaan kiya hai aapne, itane pyaare ehsaaso se rubaru karwaane ka dhanywaad.
Bhagwaan ji aapko hammesha khush rakhe,
Gudia
Jay Ambe.
कहने को हम कह देते सब रीत पुरानी होती है,
फिर भी इस जग की रोज नयी कहानी होती है,
sach kaha apne…
nam kar di ankhe..dil se nikali rachna
मैथिली शरण गुप्त ने लिखा था कि:
अबला जीवन हाय तुम्हारी यह ही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।
I voted for you in the indiblogger contest, have a look at my post.
http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=34842
http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=34779
pdhkr achcha lga…nice poem,
bas sujitji,is gudiya k paas sabd nhi hai….tareef k liye….
kaafi sahi tarike se duniya ki aankhon ko kholne ka umda prayas…..
GOD BLESS UR THOUGHTS N POEMS
EK GUDIYA PARAI HOTI H……..
ye baat maa k mn me kuch aise samai hoti h….
chah kr b vo kh nai paati k, koi fark nai mere gudde aur gudiya me…
ye lakeer ,ye khaai is duniya ne BANAI h…….
kr lu mai chahe kitne hi jatan,ye reet mughe bhulne hi nai deti…
“meri gudiya tu apani nai PARAI h”