यूँ रफ़्तार बहुत ही तेज थी … टुकड़ो टुकड़ो को समेटा..
देखो बन रहा इन्द्रधनुष सा …कुछ रंग थे इस तरह …
(चाँद ने क्या लिखा रात की हथेली पर ! ! )
यूँ चांदनी रात थी.. और ये तुम्हारी ही आहटें थी..
चाँद भी उतर आया था हमारे पास .. बस यूँ झकझोरा किसी ने तो …
न तुम थे ..और वो चाँद दूर मुस्कुरा रहा था मेरी तन्हाई पर …
(हमने भी सजा डाले कुछ अनजाने ख्वाब ! ! )
एक ख्वाब हू तेरी आँखों से जा रहा !
एक आंसू हू बस बहा जा रहा ..रोक ले जिंदगी को यूँ जाने से …
धीमा धीमा देख तुझसे नजरे चुरा रहा हूँ …
(अजनबी शहर में एक संग दिखा जब ! ! )
इस शहर से कदम मिलाने की कोशिश कर बैठे है !
बस आपसे थोरी दोस्ती की ख्वाहिश कर बैठे है ?
शायद ठुकरा दे ये गुजारिश कोई , हम तो बस एक साजिश कर बैठे है …
(एक इन्तेजार ऐसा भी ! !)
राह पे लगी थी आंखें की कोई तो आयेगा जो कह गया था लौट के आने को …
देखते रहे तब तक जब तक ये आंखें बोझिल हो के न खो गयी नींद के आगोश मे ..
देखते रहे तब तक जब तक ये आंखें बोझिल हो के न खो गयी नींद के आगोश मे ..
बस गुस्ताखी थोरी की हमने …जाते जाते फिर आने की गुजारिश कर बैठे !
(थोरी गुजारिश ! !)
रुकने की गुजारिश नही .. बस वापस आने की खाव्हिश है …!
रचना : सुजीत कुमार लक्की
1 thought on “इन्द्रधनुषी रंग जिंदगी के …My LifeStream -1”
सुलभ § Sulabh
(September 7, 2010 - 4:42 am)ये इन्द्रधनुषी रंग जीवन में पहेलियाँ बुझाते है, हम इन्हें संजो कर रखते हैं. आने वाले दिनों में गुज़रे पलों की शिनाख्त होती रहती है.
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