अब कौन डगर मुझे चैन मिले !
किस पथ जाऊ बस रैन मिले !
सूखे रूखे पतझर से,
झुकते थकते डाली पर ,
अब खुशियों की कोई कुसुम खिले !
अब कौन डगर मुझे चैन मिले !
कोई सखा सवेरे होता था,
निश्चल मन कुछ कह लेता था,
अब खमोशी की साजिश से,
किसी धीमे धीमे ख्वाहिश से,
किसी ओर नजाने कहाँ चले !
अब कौन डगर मुझे चैन मिले !
बिखरे सवाल की कश्ती सी !
दूर जल रही एक बस्ती सी !
अँधियारों पर चढ रही मस्ती सी !
बस आकुल मन को एक रोग मिले !
अब कौन डगर मुझे चैन मिले !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|