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मंदिर की घण्टियाँ …..
बचपन में इस मंदिर में आके हाथों को ऊपर करके इसे छूने का प्रयत्न करते थे ; तभी पीछे से कोई आके गोद में उठा के हाथों को पहुँचा देता …
मंदिर की घण्टियाँ ….. Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
बचपन में इस मंदिर में आके हाथों को ऊपर करके इसे छूने का प्रयत्न करते थे ; तभी पीछे से कोई आके गोद में उठा के हाथों को पहुँचा देता …
मंदिर की घण्टियाँ ….. Read Moreसतत प्रयत्न बेमानी सा है आज, अर्थहीन सफलता का बोझ कैसा, मेरा मकाँ पर अब जंजीरें और ताले है ! ईटों गारों से भी आगे कुछ लगा था, आपके सपनों …
तलाशता हूँ वो कमी – Some Memoirs On Father’s Day !! Read More