
मंदिर की घण्टियाँ …..
बचपन में इस मंदिर में आके हाथों को ऊपर करके इसे छूने का प्रयत्न करते थे ; तभी पीछे से कोई आके गोद में उठा के हाथों को पहुँचा देता …
मंदिर की घण्टियाँ ….. Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
बचपन में इस मंदिर में आके हाथों को ऊपर करके इसे छूने का प्रयत्न करते थे ; तभी पीछे से कोई आके गोद में उठा के हाथों को पहुँचा देता …
मंदिर की घण्टियाँ ….. Read Moreये पुरवा हवा.. काश इसे कैनवास पर उतारा जा सकता; शब्दों में बांधा जा सकता; या किसी संगीत में इसे समाया जा सकता; अपने संवेग से अल्हड़ बन ये बहता …
ये पुरवा हवा.. Read More