जिंदगी ऐसी ..
उम्रदराज हो रही लम्हों के मेहमां बनके,
आरजू बिखरे लम्हों को कुछ पल फिर जी जाने की,
कसक रुकसत कर उन लम्हों को कहीं छोड़ आने की !
फिर कभी ..
अपनी यादों में तलाशतें वो बिखरी छुटी हुई बात,
लौटते है उस जहाँ में पीछे, मिलेते उन लम्हों से फिर जैसे !
उलझने ऐसी ..
खुदगर्ज़ हो बैठता हूँ, लम्हों को साथ पा कर,
रोकता हूँ उसे अपने पास ऐसे ..
जैसे तलाश हो इक नये बहाने की !
आखिर..
उलझ ही जाता हूँ लम्हों में,
सोचता हूँ जिंदगी से साजिश कर लूँ,
किसी तरह इसे सुलझाने की !
फिर वक्त के सिलवटों में,
उभरी अधूरी बात कह गया कोई,
वो भी इक लम्हा था,
और आज भी ये लम्हा है..
जिंदगी है बस लम्हों में खो जाने की !
□■ SK ■□