
विचलित मन रात को निहार रहा था की तभी,
सोशल मीडिया के शोर ने खीचा लाया मुझे ,
कैसी ये छद्म दुनिया रच डाली है हमने,
रोज एक नए चेहरों की किताब(Facebook)
पर दे देते है एक नया नाम,
श्याम को sam, राम को रीता बनाते,
वाह रे सोशल इंजीनियरिंग. . . . .
अब माँ की लोरी twitter के tweets गा रहा,
यार दोस्तों की दिल की बात orkut सुना रहा,
जो पास है उनकी खबर नही बस खोज रहे रोज एक नई community,
अपनों की खबर नही बस चाह रहे सोशल identity ,
में भी इसी सोशल शोर में खोकर
अपने आप को socialized कह रहा हूँ ……….
रचना : सुजीत कुमार लक्की
3 thoughts on “सोशल मीडिया का शोर और में”
Mayur
(September 12, 2009 - 7:47 am)good going … lol
सुलभ सतरंगी
(September 12, 2009 - 2:03 pm)सही रिसर्च. स्वमूल्यांकन अच्छा लगा.
lucky
(September 13, 2009 - 9:03 am)There is lot of communication medium today to interact each other but still we are socially disconnected;we spent a virtual tech life…..
thnx for comments
– Sujit
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