सृजन के शब्दों को सहारे नहीं मिलते !
वक्त की आपा धापी को सिरहाने नहीं मिलते !
कोशिश जब की ख्वाबो को चुराने की,
रातों को नींद के बहाने नही मिलते !
लौट आने की उम्मीद इस तरह थी की ,
इन्तेजार को आँखों के पनाहें नही मिलते !
सुने राहों से जब लौट गयी एक आवाज,
लगा श्याम की बंसी को मधुर ताने नही मिलते !
इस तरह उजरी है कुछ बातें सब ओर !
जैसे वक्त की यादों को कोई तराने नही मिलते !
भागते जा रहे उहापोह जिंदगी की दौर में !
जाना तब शिकन के चेहरे से खजाने नही मिलते !
वक्त की आपा धापी को सिरहाने नहीं मिलते !
शायद भाव की कमी ~ सुजीत
बढ़िया है..
कोई तो आकर थाम ले ये हाथ…. अब हर रोज लरख्राने के बहाने नहीं मिलते…!