
इस भीड़ में !
लड़खड़ा जाती है शब्दें,
टूट जाती है पंक्तियाँ,
पूर्ण कर दो अधूरे संवादों को,
एक पूर्णविराम देकर !
विस्मित है मन,
भ्रम कैसा जैसे किसी,
पटाक्षेप में कोसा गया मैं,
कुछ चंद वार्तालापों में सोचा गया,
बेमन की हँसी बिखेर दी !
अंतरद्वंद्व में उलझा गुजरा,
व्यर्थ के पहर बीत गये,
अब अर्थ दे दो बचे वक्त को
एक पूर्णविराम देकर !