अनजाने में खुद ही खीच ली उम्मीदों की रेखा,
अब पार जाना आसान सा नही हो रहा,
खुद ही पंख पसारे उड़े थे इन आसमां में कभी,
आज सहमे से लग रहे इन बादलों के बीच !
क्यों भूल रहा इन्ही पथरीली राहों पर ठेस खाकर,
किसी दिन बनाया था अपना खुद रास्ता …
रात की सुनसान बोझिल राहों पर खड़ा एक शख्स,
जैसे हँस रहा मुझ पर, कह कहो के शोर में कह रहा हो,
चल दौड़ लगाये एक बार फिर, कहाँ गया तेरा हौसला ??
Thoughts Origin : “Competing with Myself “
– Sujit
बहुत बढ़िया…
good collection