आज रात काली काली सी,
कुछ रंगीली सवाली सी,
अँधेरे में चुपके से बादल,
छा गए जैसे वो पागल !!
बुँदे दिखी बचपन की पहेली,
पैर पटक बच्चों सी खेली,
हाथ छुपाये, भीगे से आये,
भीगे बारिश नैन लड़ाये,
बूंदों का कुछ कल कल था,
बस यादों का एक हलचल था,
पुरबा बयार से अब कौन कहे,
अब बोलो क्यूँ तुम मौन धरे,
कुछ विकल अधजगी अधराती थी,
मन की लिप्सा पर मधु भारी थी,
क्रंदन वंदन की ये एक राती थी,
कल की बारिश यूँ प्यारी थी !!
(सुजीत भारद्वाज )
वाह वाह बहुत सुंदर अहसास बरसात के परिवेश में रचना समायी है , बधाई