चाँद रात की आगोश में था छुपा छुपा,
दिन हुए फिर ओझल हुआ जा रहा वही !
ये कौन है जो इन से परे हक़ बता रहा कोई,
वक़्त की सारी कोशिशे है पास लाने की,
हर तरफ ऐसा लगता दूर जा रहा कोई !
आहट बता रहा तेरे होने की,
दिल सोचता आ रहा कोई और जा रहा कोई,
ख्वाबों ख्यालों में किस्से अनेको मिलते,
सच से रूबरू अब करा रहा कोई !
वक़्त मुताबिक नही न मुक्क्दरों से वास्ता,
हर लम्हों को फलक पर गिरा रहा कोई !
वो दिन तो बदल जायेगा किसी दिन,
गुजरते शाम सुबह जो कीमत चूका रहा कोई !