सब्र की दुहाई मत दो लंबे फासलों सी..
कमजोर है बनावटी दिल ये टूट जायेगा !
या मुकम्मल वजह दो इसे बिखर जाने की..
हर फासलों पर इसका इम्तिहान ना लो !
यूँ उम्मीद बड़ी सजायी रखी थी उनसे..
गुमनाम ठोकरों ने खूब खेला इस दिल से !
उनकी खामोशी पर मुसकुराता रहा ये दिल ..
गुमसुम हँसी पर धुंध घिरता सा आ रहा !
इस मायूसी में खो के क्या सोच रहा ये दिल..
बिखरे टुकड़ो पर भी बढ़ जायेगा ये..
ना जाने फिर किस सफर किस रस्ते !
अब तो मुकम्मल वजह दे दो इसे बिखर जाने की !
@ सुजीत
“या मुकम्मल वजह दो इसे बिखर जाने की..
हर फासलों पर इसका इम्तिहान ना लो !”
“या मुकम्मल वजह दो इसे बिखर जाने की..
हर फासलों पर इसका इम्तिहान ना लो !”