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एक गुड़िया परायी -२
बचपन की निश्छल अल्हरता को, को कभी झुँझलाहट बनते देखा ! जो खुल के भी कभी रोते थे, उसे चुप हो के सिसकते देखा ! किसी आँगन में जो खेला …
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बचपन की निश्छल अल्हरता को, को कभी झुँझलाहट बनते देखा ! जो खुल के भी कभी रोते थे, उसे चुप हो के सिसकते देखा ! किसी आँगन में जो खेला …
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