इस अनंत सफ़र की अंतिम परिभाषा
क्या है ?
सोच रखा है ..
अपनी बात मनवाने की जिद कर,
कुछ क्यों नही लगा ऐसा कभी ?
स्वार्थ भर आया है अब मेरे इस सफ़र में,
बिना जाने गढ लेता एक सूरत,
बनाना एक तस्वीर की वैसा ही है वहाँ ..
शायद जब हो कोई आम सी ..
बना देता शब्दों से नायाब मैं !
विस्मृत या स्मृति मात्र में रहेगा
ये सफर ?
क्या कोई है अंतिम परिभाषा इस स्वार्थ की ..
शायद बस मौन ।
अंतिम रिहाई .. और परिभाषा भी
इस अनवरत सफ़र को एक विराम ।
मन से विरुद्ध जाकर ही,
पथिक थक भी गया है ..
अब एक मौन विश्राम ।।