सही सही याद नहीं कौन सा वर्ष रहा होगा .. स्कूल में हिंदी की क्लास में आज इक नयी कविता को पढ़ना था ! आचार्य जी ने कहना शुरू किया – आप लोग क्या सोचते हो ट्रक ड्राईवर के बारें में ; सबने ने अपने व्क्त्य्व दिए ; रौबदार चेहरा .. क्रूर दिल ! शायद अनवरत परिवार से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए .. क्या उनके दिल से ममत्व खत्म हो जाता ! आचार्य जी ने कहना प्रारम्भ किया – आज की कविता इक ट्रक ड्राईवर के जीवन पर आधारित है की उनका भी जीवन हमारे जैसे ही होता, वो भी अपने बच्चे से प्यार करते ! भले ही वो दूर होते अपने घर से बच्चों से ..उनका दिल भी हम आम लोगों के तरह वात्सल्य से पूर्ण होता ! यह कविता है नागार्जुन की “गुलाबी चूड़ियाँ” .. जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ! ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती, कवि ने पिता के व्यक्तित्व को किस तरह सरल शब्दों में उकेरा है .. और हम सब उस कविता के शब्दों को पढ़ने लगते .. और इक ट्रक ड्राईवर की तरह उस हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में खो जाते !
कविता के अंश …..
गुलाबी चूड़ियाँ
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा –
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
कवि – नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं।