लिपटा रहता जैसे एक निशानी हो किसी की !
कस गयी है इसकी बंधन,
घुटन सी भी होती कभी, तोड़ देने की !
बेजार मन ही कह देता,
उताड़ क्योँ नही देते हाथों से !
याद है एक दिन पूजा पर बाँधी थी,
और किसी दिन साथ में २-४ मोतियों वाली,
ये तुमने दिया था कभी..
निशानी सी तेरे स्नेह की,
टूटने तक तो साथ रहे !
असमंजस क्यों तोड़ दूँ,
किसी दिन खुद टूट कर,
गिर जायेगी छुट ही जायेगी,
इन धागों से मन का एक बंधन !
तब तक रहने देता,
कुछ यादें तो साथ है इससे,
जैसे निशानी हो किसी की,
ये हाथ का धागा !
#SK …. #Poem — feeling meh.