यारों कभी तो अकेला छोड़ो,
थोड़ा हम भी रो ले कभी …
हर मोड मे यूँ मिल जाते हो ,
कैसे माने चले गए थे कहीं .
ख़ामोशी का सबब ले बैठते जब हम..
तो चुपके से गुन गुनाते हो कहीं ..
मायूस से लगते जब कभी हम,
थोड़ा गुदगुदाते हो कहीं ..
कैसे सम्हले हम ठोकरों से ,
खुद ही राहों मे खड़े मिलते हो कहीं ..
अब तक कैसे समझे चले गए !
थोड़ा हम भी रो ले कभी …
छोरो= छोड़ो
थोरा = थोड़ा….
बाकी बढ़िया!!