यारों कभी तो अकेला छोड़ो,
थोड़ा हम भी रो ले कभी …
हर मोड मे यूँ मिल जाते हो ,
कैसे माने चले गए थे कहीं .
ख़ामोशी का सबब ले बैठते जब हम..
तो चुपके से गुन गुनाते हो कहीं ..
मायूस से लगते जब कभी हम,
थोड़ा गुदगुदाते हो कहीं ..
कैसे सम्हले हम ठोकरों से ,
खुद ही राहों मे खड़े मिलते हो कहीं ..
शायद मान बैठे गैर सभी ,
अपने का अहसास दिलाते हो कभी ..
अब तक कैसे समझे चले गए !
यारों कभी तो अकेला छोड़ो,
थोड़ा हम भी रो ले कभी …
थोड़ा हम भी रो ले कभी …
रचना : सुजीत कुमार लक्की
1 thought on “यारों कभी तो अकेला छोड़ो -Treasured and Cherished”
Udan Tashtari
(October 8, 2010 - 12:36 am)छोरो= छोड़ो
थोरा = थोड़ा….
बाकी बढ़िया!!
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