मैं रात की बात लिये, शब्दों को पिरोने ..
सहसा खामोशी में घिरा देखा खुद का चेहरा,
मैंने देखा खुशियों पर मायूसी का लगता पहरा !
बात बदल कर मन को बुझा कर..
फिर कुछ छेरा हमने किस्सा पुराना !
झूठी बात पर फीकी सी हँसी बनाई..
मन के अंदर की कुछ व्यथा दबायी !
व्याकुल से चेहरों को देखा..
सोचा बस, फिर कुछ भी ना पूछा !
सब देखो गम को लिये, पसरा कैसा सन्नाटा..
हम रात की बात लिये, ढूंढे फिर से सवेरा !
SK