ये किस जवाब के बदले..
फिर कुछ सवाल थे तुम्हारे !
हँस कर ही खामोश हो चले हम..
बहल ही गया ना फिर,
बात अपना अनेकों इन्तेजार करके !
फिर वही कुछ पुराने वादों में घिरे,
किसी बनावटी किस्सों में उलझे,
बात आ निकली घुमावदार रस्तों से !
असमंजस मेरा, या फिर झुके मन मेरा,
अपनी ही हार सही हुई हर बार की तरह,
इस कदर सहम जाता, कब समझा पाऊ बात मेरी,
या कोई अभिमान ना ले जाये तुझे दूर कहीं !
कोशिश तो की हाथ छुराने की पर..
परी हुई है किन यादों की गाँठ कई !
#Sujit ..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
बहुत बढ़िया!
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