लगे खेत में पूस के मेले,
सरसों अरहर मस्ती में खेले !
ठीठुरी पुरवा पवन बहके है हौले..
अलसी व गेहूँ की बालियाँ डोले !
विहंग तरंग बांस पर झूले,
खेत पर जाने अलसाते भूले !
आग लपेटे अलाव पर जब बोले,
शाम समेटे कई किस्सों को खोले !
धुप धुंध से आंख मिचोली खेले,
निर्जन मन कैसे इस शीत को झेले !
कोई रात विरह में नैना खोले,
कोई शांत शीत ओस संग सो ले,
कोई शरद शराब, तो कोई चाँद को छु ले !
निर्जन मन कैसे इस शीत को झेले !
पूस का सुंदर चित्रण
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