![](http://2.bp.blogspot.com/-JHcDyXMU2B4/UeLxCr-T5tI/AAAAAAAAEiw/nfdOhNxa0a4/s200/village.jpg)
वो गाँव में जाते कभी छुट्टियों की रात,
झींगुरों की झन्न सी अनवरत ध्वनि,
आज भी कौतुहल सी करती मन में !
ये आवाज सन्नाटे में एक डर सा,
पर सुकून समेटे अनेकों रातों का !
आज शहर के शांत गगन में,
खोये रहते एक वीरान अधर में,
डूबे काले होते रातों के साये,
ना सन्नाटे का कोई आलम है !
ना झींगुर वो गीत सुनाता है,
ना जुगनू चमक दिखाता है !
कौतुहल तो अभी भी जारी है,
झाड़ी से निकल कर कहीं अलग,
मन में गूंज कुछ अलग झनक,
नींद खींच तान कर बस लगता,
कभी कभी झींगुर यहाँ भी गाती है !
#SK