जब सर्द की रातें है आती !


आहिस्ता आहिस्ता आगोश में आती ,
थोरी कपकपाती हाथों को सहलाती ,
ठिठुरती सिहरती ये बातें कह जाती ,

जब उनकी हँसी मन ही मन गुदगुदाती ,
ओस की बूँदें मन को है भरमाती ,
जब सूरज आँख मिचोली करके है जाती ,

कहीं अलाव पर जब बातें है छिड जाती,
और दूर कहीं कोई धुन है गुनगुनाती ,
जब सर्द की रातें है आती !

रचना : सुजीत कुमार लक्की

About Sujit Kumar Lucky

Sujit Kumar Lucky - मेरी जन्मभूमी पतीत पावनी गंगा के पावन कछार पर अवश्थित शहर भागलपुर(बिहार ) .. अंग प्रदेश की भागीरथी से कालिंदी तट तक के सफर के बाद वर्तमान कर्मभूमि भागलपुर बिहार ! पेशे से डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल.. अपने विचारों में खोया रहने वाला एक सीधा संवेदनशील व्यक्ति हूँ. बस बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ . "यादें ही यादें जुड़ती जा रही, हर रोज एक नया जिन्दगी का फलसफा, पीछे देखा तो एक कारवां सा बन गया ! : - सुजीत भारद्वाज

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4 Comments on “जब सर्द की रातें है आती !”

  1. आहिस्ता आहिस्ता आगोश में आती,
    थोरी कपकपाती हाथों को सहलाती,
    ठिठुरती सिहरती ये बातें कह जाती,

    जब उनकी हँसी मन ही मन गुदगुदाती,
    ओस की बूँदें मन को है भरमाती,
    मनमोहक.

  2. जब उनकी हँसी मन ही मन गुदगुदाती ,
    ओस की बूँदें मन को है भरमाती ,

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया… बहुत सुंदर ….रचना….

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