तन कलरव मन हर्षित होता था ,
जब कभी दीवाली आती थी .
दौर दौर के छत के मुंडेरों पर,
दीप जलाना फूल सजाना हमे तो ,
बहुत ये भाती थी ,
जब कभी दीवाली आती थी .
पटाखों फुल्झारियो की लंबी लिस्ट ,
मेरे गुल्लक से बहुत भारी थी ,
बस यही सोच कर रह जाते थे,
रोकेट और अनार की अगले,
बरस की बारी थी,
जब कभी दीवाली आती थी .
परिदृश्य बदला … आज अपने घर से दुरी त्योहारों की उल्लास को कम कर रही ,
बस याद करते है उन बातों को ,
माँ की ममता बहुत ही न्यारी थी ,
दिन गुजरे है और कुछ गुजरेंगे ,
बस अपनी तो दीवाली की यही तैयारी थी,
जब कभी दीवाली आती थी ।
रचना : सुजीत कुमार लक्कीं
आप सब धन यश वैभव से परिपूर्ण हो दीवाली की हार्दिक बधाई ! ! !
प्रकाशपर्व मंगलमय हो!
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आपको दीपावली की शुभकामनायें !!
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