जब जब उस राह से गुजरते..
कुछ चुप्पी संजीदा सी उभरती थी ..
मौज ठहर जाती इन चेहरों से ..
वही खुशबू बिखर जाती थी आसपास !
सवाल तो अब खुद खामोश हो गए ..
उसे खमोशी टूटने का इन्तेजार ही चुप करा गया !
मुह मोड़े फिर गुजरने लगे उन राहों से..
जैसे हो अजनबी, गालियाँ भी अनजानी..
नजरे भी गिरी, अनायास ना हो जाये सामना ..
भले गीत वही पुराने, पर अनसुना जैसे कोई नाता नही !
बस अतीत के लम्हों की गुजारिश रही..
पहले की गुस्ताखी अब साजिश ना समझे कोई !
Sujit kr..