वो शीत की धुप गिरती तुम पर,
भिगोती तुझे और चमक जाती,
अनेकों लकीरें तेरी चेहरों पर !
कभी देखते मेरी नजरों से तो जान पाते !
उबड़ खाबड़ राहों पर देख तेरी नादानियाँ,
सहम जाते हम, कोई तो हो संभाल ले,
लरखराते तेरे कदमों को जरा !
कभी चलते मेरे संग तो जान पाते !
खेलते तुम गुब्बारों, गुड्डो गुड़ियों से,
सोचते कुछ खींचा तानी साथ करते,
छीन लेते कुछ हिस्से तेरे उन लम्हों से !
कभी खेलते मेरे संग तो जान पाते !
अठखेलियों सी खिलती हँसी तुझपर,
और कभी मायुस से किसी कोने में जा,
सोचता हँसा पाते फिर तुम्हें अपनी किसी बातों से !
कभी सुनते मेरी बातें तो जान पाते !
चुप होते हो जब तुम कई सवालों से,
और कभी ढूंढते हो खुद को किसी सवालों से,
सोचता छुकर तोड़ देता खामोशी तेरी !
कभी सोचते तुम भी ऐसा तो जान पाते !
क्योँ में रुकता किसी रास्तों में,
और देखता पीछे ; शायद कोई हो तेरे जैसा,
फिर देखता तुझे जाते हुये,
सोचता गुजर जाऊँ मैं उधर !
कभी आते इन रस्तों से तो जान पाते !
ये ह़क किसने दिया जो,
क्योँ बातों में जाराजगी दिखाते,
डपट के कुछ बोल जाते तुमसे,
कभी मन ही मन रूठ जाते !
क्या जाने हम रूठने का सबब, कभी मनाते तो हम जान पाते !
अक्सर हम बातों में उलझते,
उलझ जाते तेरे ख्यालातों में,
कभी कोशिश भी करते,
चुप हो बस कहीं खोये रहे,
सबसे दूर छुप जाएँ कहीं !
अजनबी हो मशहूर हम, अपना बनाते तो जान पाते !
कभी देखते मेरी नजरों से तो तुम जान पाते !
आपकी पोस्ट की चर्चा 17- 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें ।
कभी देखते मेरी नजरों से तो जान पाते