दो झूले और बच्चे कतार में,
फीकी हरयाली इस छोटे से बाग में !
पेड़ छोटे, इस शहर की रंगचाल में,
दायरा आसमां ने भी समेटा,
लंबी लैम्पपोस्टो की आढ़ में !
ऊँघती बेंचे घासों के बीच,
सोचते कोई छेड़े कोई किस्सा,
इस गुमशुम से हाल में !
सहमे पड़े बरसाती मेंढक,
चहल पहल से है बैठे ठिठके !
झुरमुट संग लिपटे लब्ज सभी के,
इस कृत्रिम जीवन जंजाल में !
हाथ थाम चल लो दो कदम इस साँझ के,
दिल धड़केगे खूब किसी सवाल में !
एक साँझ माँगे एक कोना,
दिवा रात की किसी समयताल में !
हो गयी रात ले चली साँझ को संग,
धीमे कदम से, बढ़ चले हम भी किसी संग की तलाश में !
* Sujit Continued….