ऑफिस के खिड़कियों से यूँ ही बाहर होते झमाझम बारिश को देखर मना झूम उठा और कुछ बचपन की यादें ठहर सी गयी …मन में
सावन लाने को आतुर बरस रही बुँदे एक दूसरे पर ..
चलो आज फिर मिलके एक नाव चलाये कागज़ का ही सही !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
The Life Writer & Insane Poet
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खूबसूरत पोस्ट
बहुत उम्दा ख्याल!
सुखद अहसास – मनमोहक