परतों में रखा था छुपा के हमने खमोशी !
खोल दी जो थोरी सी हवा उठी किसी ओर से !
थोरी दूर जा के अहसास सा होने लगा !
अब कोई लौटने वाला नही इन राहों से !
मेरी बातों की गुजारिश ऐसी हुई खाली !
जैसे कोई ख्वाब जला गया हो सीने से !
देखे न दिखे मेरे चेहरे पर एक उमंग !
आज फिर पाया वहाँ बस सवालों का संग !
उलझा दिया आज फिर सवालों ने !
“परतों में रखा था छुपा के हमने खमोशी !
खोल दी जो थोरी सी हवा उठी किसी ओर से !”