यह चक्रव्यूह था जिसको ना जाना,
और राम ने शायद मन में क्या ठाना !
थे संशय में अर्जुन गांडीव धरे,
इस चक्रव्यूह में क्यों राम परे !
हर राह खरे व्यभिचारी थे,
कहीं द्रोण तो भीष्म भी भारी थे,
आशंकाओं से भरे व्यूह ने,
पांडव को भी भरमाया था ..
इस व्यूह में कूद कर आखिर,
राम ने क्यों भाग्य अजमाया था ?
कहीं धन काला, कहीं मन काला,
इस व्यूह में हर जन काला,
अब कोई तो प्रतिकार करे …
कोई चक्रव्यूह को पार करे …
आओ अभिमन्यु इस व्यूह का तुम संहार करे,
या रंग दे बसंती बन कोई न्याय पर थोड़ा वार करे !
Sujit Kumar (सुजीत भारद्वाज)