ये तिमिर घना चहुओर है फैला,
हर रोज सोच से रूबरू एक चेहरा,
इन शोरों में दर्प फैला है गहरा !
हर तरफ बिफरा है शोर !
जो हँस रहे जितना ,
उतना उनको खोने का है होड़ ..
किस मकसद, किस मंजर जाये किस ओर !
क्या करे जिंदगी पर अपना नहीं जोर,
चुप ही रह जाते है अपनी बातों पर,
जाने कोई हँस परे कब मेरे शब्दों पर,
शायद मेरे रास्तों में आता नही मोड़ ..
नजाने इस चर अचर का थामा किसने है डोर ??
तूफानों के पार, परे इन ख्वाबोँ से आयेगा एक दौर !