अब मुझे कोई इन्तेजार कहाँ !
तेरी मायूसी का ऐतबार कहाँ !
यूँ भागे है किस तरफ तब से ,
की अब हमे चैन कहाँ !
पिघल जाये ये दिल आंसुओं से ,
पर उन्हें रोकने वाले हाथ कहाँ !
क्यों रुक जाये हम जाने से ,
मुझे रोकने वाले वो आवाज कहाँ !
अब मुझे कोई इन्तेजार कहाँ…
रचना : सुजीत कुमार लक्की
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
अब मुझे कोई इन्तेजार कहाँ…
बहुत खूब, लाजबाब !
ग़ज़ब की कविता … कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
पिघल जाये ये दिल आंसुओं से ,
पर उन्हें रोकने वाले हाथ कहाँ !
………….
bahut sahaj khyaal
ये बात तो ठीक नहीं !!
प्रतीक्षारत रहिये.
हिम्मते मरदां ते मददे खुदा.