“आज जन्मदिवस पर कुछ भाव अनायास मन में उठे !
इस कविता का संदर्भ : मैं गंगा किनारे बसे अंग प्रदेश से हूँ ..
और अभी यमुना नदी के शहर दिल्ली में रह रहा हूँ !
कुछ भाव इस प्रकार है ..जीवन यात्रा भागीरथी तट से कालिंदी तट तक की बयाँ है ! “
अंग प्रदेश की भागीरथी को ..
मोड़ लाया कालिंदी के संग !
कभी कल कल बहती वो जहान्वी,
वेग उफान कभी सहती बहती !
अब सिमटी सिमटी चलती वो जहान्वी,
आज थम गयी यमुना के संग !
मटियाले जल से सजा था जीवन ,
आज चढ़ ही गया उसे ये शहरी रंग !
जिस जल में धुल जाते थे ,
हर अगणित पापी तन ,
आज उस पर ही चढ़ बैठा ,
ये राग द्वेष का कैसा रंग !
किस किस को कोसे ये मन ,
मन मैले संग मैंने रंगा दिया,
भागीरथी तेरा ही दिया तन !
अंग प्रदेश की भागीरथी को ..
मोड़ लाया कालिंदी के संग !
– : सुजीत
अंग प्रदेश की भागीरथी को ..
मोड़ लाया कालिंदी के संग !
…
भावुक कर दिया भाई तुमने आज.
ये समय है, परिवर्तन की बयार है, इसे रोकना भी उचित नहीं है. हाँ हम इतना जरुर कर सकते अपने अन्दर सदैव भागीरथ की पावन स्मृति को सहेज कर रखे,
ताकि शहरी रंग में भी हमारे अन्दर अनंत ऊर्जा का संचार होता रहे. जिसके प्रभाव से अन्यों का भी मार्ग प्रशस्त कर सकें.
pdhkr khushi hui…bhawnao ka sangam dikhayi deta h…..
@BT thnx 🙂
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