सब बिखरा सा ..More Than A Poem
सब बिखरा सा .. क्या क्या समेटू इन दो हाथों मे ? वो परेशां थे.. पर उनकी बड़ी ही चाहत थी,हमे आजमाने की ! खामोश हूँ खरा .. देख रहा …
सब बिखरा सा ..More Than A Poem Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
सब बिखरा सा .. क्या क्या समेटू इन दो हाथों मे ? वो परेशां थे.. पर उनकी बड़ी ही चाहत थी,हमे आजमाने की ! खामोश हूँ खरा .. देख रहा …
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