अमरलता के बेले और पेड़ – 100th Poem
चहकती थी हर उस डाल पर बैठी पंछियाँ, अब पतझर सा लगता , एक ठूंठ सा खरा पेड़ ! बड़े सुने सुने से सुनसान सा प्रतीत होता , ना झूले है उस पर, यूँ …
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चहकती थी हर उस डाल पर बैठी पंछियाँ, अब पतझर सा लगता , एक ठूंठ सा खरा पेड़ ! बड़े सुने सुने से सुनसान सा प्रतीत होता , ना झूले है उस पर, यूँ …
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