दुरी चंद कदमो की, ये कैसा फासला था ! – On Way of Life

दुरी चंद कदमो की, ये कैसा फासला था ! अनजान सिमट कर रह जाता हूँ , ये कैसा आसरा था ! खायालात ख़ामोशी का हाथ थामे चल रहे , कहाँ …

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