मसखरे की ख़ामोशी का क्या

मेरे द्वंद से तुम सब को खामोश होते देखा, देखा मैंने शिकन की रेखाओं को उभरते.. ना जता सका देखा तुझे चुप चाप कुछ सहते हुए ! क्यों किस उम्मीद …

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