यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर ,
अब कोई खरखराहट भी नही है इनमे,
शायद ओस की बूंदों ने उनकी आँखों को
कुछ नम कर दिया हो जैसे …
बस खामोश से यूँ चुपचाप परे है ,
यादों के ये पत्ते …
जहन मे जरुर तैरती होगी बीती वो हरयाली,
हवायें जब छु जाती होगी सिहरन भरी ..
पर आज भी है वो इर्द गिर्द उन पेड़ों के ही ,
जिनसे कभी जुरा था यादों का बंधन ..
सन्नाटे मे उनकी ख़ामोशी कह रही हो जैसे,
अब लगाव नही , बस बिखराव है हर पल ,
यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर !
रचना : सुजीत कुमार लक्की ( Post Dedicated to friends ..).
यादों के ये पत्ते …nice post..