देखा हर नब्ज जिंदगी का ..
पूछ बैठा इरादा क्या है !
जब समझ बैठा कोई परछाई ..
तब देखा मेरा साया क्या है !
रह रह झलक जाता जब कोई ..
देखे न दिखा नजारा क्या है !
खामोश दीखते हर राहों पर जब ..
फिर पूछते तेरा वादा क्या है !
मुस्कुराहटो को छिपा रखा सिरहाने ..
तो समझा तेरा बहाना क्या है !
फासले बढे तो बढे चुप थे ..
रो परे जब पूछा ठिकाना क्या है !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
खुबसुरत गजल है। हर शेर लाजवाब है। आभार।