आज हम भीगे यूँ जी भर के …
ना डर था कोई रोक लेगा आ के हमे !
ना डर था माँ डाटेंगी यूँ भीगे कपड़ो को देख कर !
ना कोई लपक के सहलायेगा भीगे बालों को ,
ना मिल जायेगी, कोई गर्म प्याली चाय की ..
बस नजाने क्यूँ दो चार बुँदे ,
आँखों से फिसल गयी इस बरसात में !
बस आज हम भीगे यूँ जी भर के ऐसे ..
रचना : सुजीत कुमार लक्की
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
http://veenakesur.blogspot.com/
भावुक कर दिया !!
बस नजाने क्यूँ दो चार बुँदे ,
आँखों से फिसल गयी इस बरसात में !
wah … kya baat hai … bahut bhavpoorn …
aapki rachana pdhakar aisa lagta hain ki ek bar fir bachche bankar barish main bhige.