यूँ बैठे थे की हवाओ ने रुख बदला और कुछ फुहारों ने मन को हर्षित कर दिया और कुछ मन मे आये भाव…
देखो बह रही ये कैसी बहार,
बरसी है तन पे ये भीगी फुहार !
यूँ निहारे वो मन को और गाये ये राग,
बरसों यूँ मेघा कर दो शीतल तुम आज !
छोरे तपिश को, नाचे हम आज,
आई रे आई ये रिमझिम फुहार !
रचना : सुजीत कुमार लक्की
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं … मन मोह लिया इस चित्र ने तो !
wowwwwwwwwwwwwwwwwww
oh la laaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa!!!!!!!!!!
wow lucky bhaiya aap to poet ban gaye