उजाड़…
उजाड़ दिन , जैसे कुछ किताबें इधर उधर हो बिस्तर पर , कपड़े मुड़े सिमटे फेंकें हुए , क्या कहाँ किस ओर क्या पता , घण्टों खोजो तो न मिलता …
उजाड़… Read MoreThe Life Writer & Insane Poet
उजाड़ दिन , जैसे कुछ किताबें इधर उधर हो बिस्तर पर , कपड़े मुड़े सिमटे फेंकें हुए , क्या कहाँ किस ओर क्या पता , घण्टों खोजो तो न मिलता …
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जब भी बादल छाता है मेरा बचपन लौट जाता है ; वो कागज की नाव, वो छोटी सी छतरी , भीगे से जुते, बारिश में खेल, वो गिरना फिसलना , …
बचपन और बादल Read Moreकभी कभी छत की ऊपरी मंजिल पर जाता हूँ, नितांत रात में निहारने आकाश को, इस भागदौड़ में भूल जाता हूँ प्रकृति के इस अजूबे को बचपन से जो नहीं …
In Search of Orion … Read More
नया साल जैसे आपको ये महसूस होता की चलो एक पुराना लम्हा था खत्म हुआ ; अब एक नई उम्मीद है पुराने साल की कुछ अनचाही चीजें लगती इस साल …
नया वर्ष है नया सवेरा .. Read More
धुंध के दोनों पार बैठे हम वहम भी है होने का और नहीं भी तुम भी बोलते कभी कभी कभी कभी कुछ मैं भी कहता हूँ धुंध में खोये दो …
धुंध में अजनबी Read More
वार्तालाप बस दिनचर्या की तरह, जैसे अधूरी ख्वाहिशों की सेज हो, कोई समझौते की बंदिश है इसपर, या शब्दविहीन तल्खी हो कोई अंदर ! रोज खिड़की से दिखती सुबह, और …
वार्तालाप …. Read More